बहुत कठिन है डगर शराबबंदी की ?
अनिल कुमार पारा,
एक देश और कई राज्य, एक सरकार और कई
सरकारें, यानी अनेकता में एकता भारतीय गणराज्य की यही एक विशेषता रही है।
यही कारण है कि अलग-अलग राज्यों की नीतियां भी राष्ट्रीय स्तर पर भारत के
किसी भी कोने में रह रहे भारतीयों को प्रभावित करती रहती हैं। भले ही दूसरे
राज्यों की नीतियों से हमारा कोई लेना देना नहीं है। पर समाजिक मूल्यों
में सुधार हां या आर्थिक सुधार की परिभाषा वह हमारे मन और मस्तिक को कौसों
मील दूर तक प्रभावित करती है। यही कारण है कि हम उन नीतियों की चर्चा अपने
गली मोहल्ले के हर नुक्कड़ पर बेधड़क करते हैं। यही चर्चा सोसल मीडिया के
माध्यम से उन लोगों तक पहुंच ही जाती है, जो लोग सीधे तौर पर देश और प्रदेश
की नीतियों के नीति नियंता कहलाते हैं।
गली के नुक्कड़ से निकला छोटा और
अंतहीन मुद्दा आखिर राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर हल करने की समस्या बन जाता
है। सामाजिक मूल्यों में मुद्दा चाहे शराबबंदी का हो या फिर समाज सुधार का
या कोई अन्य मुद्दा सबकी अपनी-अपनी जगह अलग पहचान और जरूरत होती है।
विकासपरख योजनाएं हों या फिर रोजगारोन्मुखी नीतियां चाहे राज्य स्तर की हो
या राष्ट्रीय स्तर की इनका असर तो हर छोटी-से-छाटी जगह में पड़ता ही है। जब
बात पूरे देश में शराबबंदी की हो तो फिर इसे विकासपरख योजनाओं में शामिल कर
प्रति व्यक्ति की औसतन आर्थिक आय में सुधार के लिए कदम बढ़ाना कहा ही
जाऐगा। और ऐसी विकासपरख योजनाओं को सरकार की नीतियों में शामिल कराना हमारा
का ध्येय बन जाता है। यही बात बिहार में लागू शरावबंदी के बाद आए उन
सार्थक परिणामों की भी है जो जनता और जनार्दन से सीधे जमीनी स्तर पर जुड़े
थे, और इसके परिणाम भी आम जनता के लिए अनुकूल दिखने लगे हैं। बहरहाल बिहार
के बाद देश के दक्षिणी राज्यों में भी शराबबंदी पर रोक की आवाजें अब उठने
लगीं हैं।
शराब को प्रतिबंधित करने वाला अकेला बिहार राज्य नहीं ह,ै इससे
पहले गुजरात, नागालैंड, लक्षद्वीप, जैसे राज्यों में शराब बिक्री पर रोक
लगी हुई है। ऐसा भी नहीं कि इन राज्यों में शराबबंदी होने से राज्य के
राजस्व को अपूर्तिनीय क्षति हुई हो। बल्कि शराबबंदी होने से इन राज्यों की
प्रतिव्यक्ति औसतन आय में इजाफा हुआ है। यानी जो खर्च प्रतिव्यक्ति शराब के
सेवन में करता था। उसकी बचत होने से इनकी आर्थिक स्थित में सुधार के
आंकडों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। मसलन बिहार के बाद पूरे देश
में अलग-अलग जगहों से शराब बंदी की पुरजोर मांग उठ रही है कि शराब बिक्री
पर पूरे देश में एक साथ बैन लगाया जाय। शराब बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध
राज्य सरकारों के खजाने लिए तो जोखित भरा है ही केन्द्र सरकार के लिए भी इस
विषय में कोई फैसला लेना असंभव ही जान पड़ता है। तब कहा जा सकता है कि बहुत
कठिन है डगर शराबबंदी की।
हालांकि गुजरात, बिहार, नागालैंड , लक्षद्वीप
जैसे राज्यों को शराब बिक्री पर बैन क्यों लगाना पड़ा इसको भी समझना ही
पड़ेगा। क्या ये चुनावी स्टंट था ? या फिर सही मायने में राज्य की जनता को
नशा मुक्त बनाने का संकल्प ? गुजराज , बिहार, नागालैंड, लक्षद्वीप ही नहीं
वर्ष 2014 से पहले मणिपुर में भी शराब की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगा हुआ
था। जिसे 2014 के बाद कुछ इलाकों से शराब पर बैन हटा लिया गया है। हाल ही
के चुनावों के परिणामांं से पहले जो राजनीतिक दल शराब बिक्री पर बैन की
घोषणा कर रहे थ,े उनमें अकेले तमिलनाडु राज्य में डीएमके के द्वारा धोषणा
की गई थी कि शराब पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जायेगा। इसी प्रकार
एआईएडीएमके ने भी राज्य में चरणबद्ध तरीके से शराब पर पाबंदी लगेगी की
घोषणा से प्रभावित होकर राज्य की जनता ने फिर से जयललिता को राज्य की कमान
सौंप दी है। हार का सामना कर चुकी पीएमके और पीपुल्स वेलफेयर फ्रंट ने भी
राज्य में शराब पर पाबंदी और विक्रेताओं के लाइसेंस रद्द किए जाने की घोषणा
कर चुके थे।
तमिलनाडु राज्य पर नजर दौड़ाई जाय तो अकेल तमिलनाडु राज्य में
शराब पीने वालों की तादात 1.32 करोड़ है। जिसमें राज्य की प्रति व्यक्ति
मासिक आय 10,697 रूपये है। जिसमें प्रतिव्यक्ति 6,522 रूपये शराब पर होने
वाला औसत मासिक खर्च है। अकेले तमिलनाडु में 67,444 करोड़ हर साल शराब से
होने वाली शारीरिक बीमारियों के कारण खर्च हो जाता है। ऐसे हालातों में
अकेले तमिलनाडु में प्री पोल सर्वे में 95 प्रतिशत महिलाएं और 82 प्रतिशत
पुरूष ने (तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग क्रॉप) को बंद करने की मांग की है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री भी राज्य में शराब बिक्री को धीरे-धीरे बंद करने
की धोषणा कर चुके हैं। अब देखना यही है कि चार राज्यों के बाद क्या
मध्यप्रदेश राज्य भी शराब को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर पाऐगा ? या फिर
राजस्व में घाटे की दुहाई देकर यह राज्य भी अपनी धोषणा की इतिश्री कर लेगा।
तब भी कहा जाएगा कि बहुत कठिन है डगर शराबबंदी की।
देश में अलग-अलग
राज्यों से शराब बंदी की आवाजें उठने के बाद देश के वह राजनेता भी सक्रिय
हो गये हैं जिनके पास शराब का कारोबार है। अथवा उनका संबंध शराब उद्योग से
कई वर्षो से चला आ रहा है। ऐसे हालातों में राज्य और देश में शराबबंदी की
परिभाषा कुछ अलग ही हो सकती है। जाहिर है शराबबंदी से इसका सेवन करने वालों
पर तो असर पड़ेगा ही सबसे ज्यादा यदि असर पड़ेगा तो उन राजनेताओं की तिजोरी
को पड़ेगा जो कई दसकों से इस धंधे से फल फूल रहे हैं। तब देश और प्रदेश में
शराब बंदी के मायने जनता की चाह पर कायम नहीं हो सकते। ऐसे हालातों में भी
कहा जा सकता है कि बहुत कठिन है डगर शराबबंदी की। एक तरफ आंकड़ांं पर भरोषा
किया जाय तो अकेल भारत में शराब के प्रभाव से हर 96 वें मिनट पर एक भारतीय
की मौत हो जाती है। वर्ष 2013 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों
से पता चलता है कि भारत में शराब से प्रतिदिन 15 लोग या हरेक 96 वें मिनट
में एक भारतीय मौत के काल के गाल में समा जाता है। रिपोर्ट में यह भी कहा
गया है कि 11 फीसदी से अधिक भारतीय शराब के प्रभाव में आए हैं।
यह आंकड़े
शराबबंदी के खिलाफ व्यापक राजनीतिक समर्थन होने की ओर इशारा जरूर करते हैं।
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि शराब एक सवास्थ्य संबंधित समस्या है न
कि नैतिक समस्या। पर मौजूदा हालातों में शराबबंदी स्वास्थ्य समस्या नहीं रह
गई है, बल्कि हमारी नैतिक समस्या भी बन गई है। जिसे एक व्यक्ति या एक
राज्य हल नहीं कर सकता है। शराबबंदी का निर्णय कोई भी सरकार ले भी लेती है
तो इसे लागू करने में उस राज्य की उस आबादी पर ज्याद निर्भर होता है जो
आबादी इसका उपभोग करती चली आ रही। शराबबंदी के पीछे उस समाज की भी कल्पना
हमको करनी होगी जो समाज हमारी आने वाली पीड़ी से आने वाले समय में आकार लेने
वाला है। और उसी समाज से हमारे मुहल्ले, हमारे गांव, हमारे शहर, हमारे
राज्य, हमारे देश का ही नहीं हमारे विश्व का निर्माण हो सके।
यानी जब तक हम
नहीं सुधरेंगे तब तक देश और प्रदेश में शराबबंदी लागू होना संभव ही नहीं
नामुकिन भी है। अब इसे समझने के बाद सवाल साफ हो चुका कि पहले हम तो सुधर
जाएं? फिर हमारा घर सुधरेगा, और जब हमारा घर सुधरेगा तो हमारा मोहल्ला भी
सुधर जाएगा। और जब हमारा मोहल्ला सुधरेगा तब हमारा गांव भी सुधर जाएगा। यही
कड़ी गांव से शहर और शहर से प्रदेश, और प्रदेश से देश तक जाएगी। तभी हम
अपने प्रदेश और देश को शराब मुक्त बना पाएंगे।
-------------------अनिल कुमार पारा,